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विश्व की स्थानीय पवने

Posted on: फ़रवरी 8, 2009

काराबुराँन–यह ग्रीष्म के प्रारम्भ में तारिम बेसिन में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा हैं ।

चिनूक–पर्वतीय ढाल के सहारे चलने वाली गर्म व शुष्क हवा हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका मे चलती है । इस हवा का औसत तापक्रम ४० डिग्री फा० होता हैं । इस हवा के आगमन से तापक्रम मे अचानक बड़ने लगती हैं तथा कभी-कभी तो तापमान मिनटों में तापक्रम ३४ डिग्री फा० तक बढ जाती हैं जिसके फलस्वरुप धरातल पर बर्फ अचानक पिघलने लगती हैं ।इस कारण इस पवन को हिमभक्षी भी कहते हैं

जोरम–यह जूरा पर्वत से जेनेवा झील तक रात्रि में चलने वाली शीतल एवं शुष्क हैं ।

टेरल–यह पेरु एवं चिली के पश्चिमी तटों पर चलने वाली पवन हैं ।

नारवेस्ट–यह न्यूजीलैण्ड में उच्च पर्वतों से उतरने वाली गरम, शुष्क तथा धूल भरी हवा हैं ।

नार्दन–यह टेक्सस राज्य (संयुक्त राज्य अमेरिका)में चलने वाली शुष्क तथा शीतल हवा हैं |

नेवाडोज–यह दक्षिणी अमेरिका के एण्डीज पर्वतीय हिम क्षेत्रों से इक्वेडोर की उच्च घाटियों में नियमित रुप से प्रवाहित होने वाली हवा हैं, जो एक एनाबेटिक हवा हैं । यह पर्वतीय वायु रात्रि-विकिरण बर्फ के सम्पर्क से ठ्ण्डी हो जाने के कारण ढालों से नीचे की ओर प्रवाहित होती हैं ।

पैम्परो–यह अर्जेण्टीना तथा यूरुगुए के पम्पास क्षेत्र में चलने वाली रैखिय प्रचण्ड वायु हैं ।

पोनेन्टी–यह भूमध्य सागरीय क्षेत्रों विशेषकर कोर्सिको तट तथा भूमध्य सागरीय फ्रांस में चलने वाली शुष्क तथा ठंडी धारा हैं ।

फाँन–यह आल्पस पर्वत के उत्तरी ढाल से नीचे उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा हैं । इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विटजरलैण्ड में होता हैं ।

फ्राइजेम–यह ब्राजील के उष्णटिबन्धीय कैम्पोज क्षेत्र में प्रति चक्रवात उत्पन्न हो जाने के कारण आने वाली तीव्र शीत-लहर हैं, जो मई या जून के महिनों में प्रवाहित होकर इस क्षेत्र के तापमान को १० डिग्री सेण्टिग्रेड तक घटा देती हैं ।

बर्गस–यह दक्षिणी अफ्रीका में जाड़ें में चलने वाली गर्म हवा हैं, जो आन्तरिक पठार से तटीय भाग की ओर चलती हैं ।

बाग्यो–फिलीपीन्स द्वीपसमूह में आने वाले उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को बाग्यों के नाम से जाना जाता हैं ।

बोरा–क्रोएशिया में बोरायूगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट पर चलने वाली ठंडी हवा ।

ब्रिकफिल्डर–यह आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में चलने वाली गर्म एंव शुष्क हवा हैं ।

मिस्ट्रल–यह रोनघाटी (फ्रांस) में जाड़े में चलने वाली ठंडी हवा हैं ।

मैस्ट्रो–यह भूमध्य सागरीय क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में चलने वाली उत्तरी-पश्चिमी हवा हैं ,जो यहां उत्पन्न होने वाले अवदाब के पश्चिमी भाग में अधिक तिव्रता से प्रवाहित होती हैं ।

लू–उत्तरी भारत में गर्मियों में उ०.पु०. तथा प०. से पू०. दिशा में चलने वाली प्रचण्ड उष्ण तथा शुष्क हवाओं को लू कहतें हैं । इस तरह की हवा मई तथा जून में चलती हैं ।लू के समय तापमान ४५° सेंटिग्रेड से तक जा सकता है।

विरजोन–यह एक समुद्री पवन हैं जो पेरु एवं चिली के पश्चिमी तटों पर चलती हैं ।

वेण्डाव्लेल्स–यह जिब्राल्टर जल सन्धि तथा स्पेन के पूर्वी तट से सुदूरवर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले अवदाबों से सम्बन्धित तीव्र दक्षिणी पश्चिमी हवा हैं , जो प्राय शीतकाल में तीव्र वर्षा करती

शामल–यह मेसोपोटामिया (इराक) तथा फारस की खाडी में चलने वाली गर्म तथा शुष्क उत्तर-पूर्वी हवा हैं ।

साण्टा आना–दक्षिणी कैलिर्फोनिया में साण्टा आना पवनयह दक्षिणी कैलिर्फोनिया राज्य (संयुक्त राज्य अमेरिका) में घाटी से चलने वाली गर्म तथा शुष्क पवन हैं |

सिमूम–यह अरब के मरुस्थल में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा हैं ।

सिराँको–सिराँको का प्रवाहयह सहारा मरुस्थल में भुमध्य सागर की ओर चलने वाली गर्म हवा हैं । सहारा मरुस्थल से इटली में प्रवाहित होने वाली सिराँको हवा बालू के कणों से युक्त होती हैं, तथा सागर से नमी धारण करने के बाद जब इटली में वर्षा करती हैं तो इन बालू के कणों के कारण वर्षा की बूंदे लाल हो जाती हैं । इस प्रकार की वर्षा को इटली में रक्त की वर्षा कहतें हैं ।

सिस्टन–यह पुर्वी ईरान के सिस्टन राज्य में ग्रीष्म काल में चलने वाली तीव्र उत्तरी हवा हैं , जिसकी गति कभी-कभी ११० कि० मी० प्रति घन्टा तक हो जाती हैं । इसे १२० दिन की पवन भी कहा जाता हैं ।

हबूब–उत्तरी एवं उत्तर पूर्वी सुडान, विशेषकर खारतूम के समीप चलने वाली एक प्रकार की धूल भरी आँधी, जिसके कारण दिखाई सेना भी कम हो जाता हैं तथा कभी-कभी तडित-झंझावतों के साथ भारी वर्षा भी हो जाती हैं । यह विशेषकर मई तथा सितम्बर के महिनों में दोपहर के बाद चलती हैं

हरमट्टम–यह सहारा मरुस्थल से उत्तरी पूर्व दिशा में चलनें वाली गर्म तथा शुष्क हवा हैं । गिनी तट पर इस हवा को डाक्टर वायु के नाम से जाना जाता हैं क्योंकि यह वायु इस क्षेत्र के निवासियों को आर्द्र मौसम से राहत दिलाती हैं ।

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संपादक- मिथिलेश वामनकर

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